Rp Yadav

हर आदमी के अंदर,
एक और आदमी रहता है ...

हम कविता चुराते है.

हम कविता चुराते है, गिरती हुई पलकों से जुबा की खामोशी और आँखों की बोली से,

हम कविता चुराते है

हम कविता चुराते है
हम कविता चुराते है,
गिरती हुई पलकों से
जुबा की खामोशी और
आँखों की बोली से,
शब्दों की सरगम और
चेहरों की रंगोली से…
 
हम कविता चुराते है
कदमों की आहट से,
दिलों की धड़कन और
सांसों की गर्माहट से,
मिलन की मिठास और
जुदाई की कड़वाहट से…
 
हम कविता चुराते है
चेहरे की रंगों से,
तन की हरकतों और
मन की तरंगों से
कहने के तरीकों और
सुनने की सलीकों से,
हम कविता चुराते है,
झुकती  हुई पलकों से…
 
         ***        

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