सोचा था आज बात करेगे ...

सोचा था आज बात करेंगे
यदों की बारात करेंगे,
शिकवा और शिकायत करेंगे,
यह भी करेंगे, वो नही करेंगे,
बहुत दिनों के बाद मिले है
फूलों की बरसात करेंगें…
न जाने क्या थी मजबूरी
तमन्नाएँ रह गयीं अधूरी
कर न सके कुछ बातें फिर से
निकल सका ना जुबा से जैसे
अब तो बस इंतज़ार करेगें
फिर कभी हम बात करेगें
सोचा था आज बात करेगे …
जीवन की है कुछ मजबूरी,
भाषा और अर्थों की दूरी
भावों मनभावों की शूली
बातें जो रह गयीं अधूरी
कर सकते नहीं उसे हम पूरी
पहले खुद से बात करेगें
फिर उनको हम याद करेगें
सोचा था आज बात करेगें …
वादों का है क्या भरोसा
जाने कब दे जाए धोखा,
घायल कहीं हो जाए न रिश्ता
आदमी हूं, नहीं कोई फरिस्ता
इस डर का समाधान करेगे
फिर हम उनसे बात करेगे
आज नहीं कभी और करेगे
सोचा था आज बात करेगें …
क्या है जो रोकती है राहें
समझ नहीं सकती है आहें,
ढूढती है जिन्हें निगाहें
इंतज़ार करती है बाहें,
बर्षों पहले मिला था जिनसे
उनसे आज तकरार करेगें
सोचा था आज बात करेगें …
जीवन के कुछ पल है ऐसे
छुपी हुई पलकों में जैसे,
उस पल का दीदार करेगे
गुजरे दिनों को याद करेगे
सन्नाटों ने कहा है जो कुछ
दीवारों ने सुना है जो कुछ
उन बातों पर इकरार करेगें
सोचा था आज बात करेंगे…
अपनों की गिनती है छोटी
रिश्तों की बंधन है मोटी,
हम इनसे तकरार करेंगे
एक बार नहीं सौ बार करेगे
फिर उनसे हम बात करेगें
सोचा था आज बात करेंगे …
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