Rp Yadav

हर आदमी के अंदर,
एक और आदमी रहता है ...

क्या यही जिन्दगी है ?

आजकल के कुछ सुविधा संपन्न बच्चों के दिनचर्या पर आधारित संदेशात्मक रचना .

क्या यही जिन्दगी है ?

क्या यही जिन्दगी है
 
सुबह यूँ जगना जैसे

जगना जरुरी न हो,
वक्त के साथ यूँ चलना
जैसे वक्त की कमी न हो
क्या यही जिन्दगी है  ?

दिन को रात समझना
जैसे सोना ही अपनी मंजिल हो
रातों को दिन में बदलना
जैसे जगना ही मजबूरी हो
क्या यही जिन्दगी है ?

नमक हलाली से दूर
नमक हरामी को अपनाना
हकीकत छोड़
ख़्वाबों में खो जाना
क्या यही जिन्दगी है ?

अपनी तारीफों के गीत
खुद ही गुनगुनाना
औरों के जीवन में
काटें बिछाना
क्या यही जिन्दगी है ?

           ★★★

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top