Rp Yadav

हर आदमी के अंदर,
एक और आदमी रहता है ...

एक दिन की जिन्दगी

एक दिन की जिन्दगी,कुछ और नहीं सौ वर्ष की बड़ी जिन्दगी की एक छोटी सी तस्वीर है. इस तस्वीर मेंवो सब कुछ नजर आता है, जो सौ वर्ष की जिन्दगी मेंहर मोड़ पर

एक दिन की जिन्दगी ...

एक दिन की जिन्दगी
एक दिन की जिन्दगी,
कुछ और नहीं
सौ वर्ष की बड़ी जिन्दगी की
एक छोटी सी तस्वीर है.  
इस छोटी सी तस्वीर में
वो सब कुछ नजर आता है
जो सौ वर्ष की बड़ी जिन्दगी में
हर मोड़ पर टकराता है…
 
सुबह बचपन,
दो पहर जवानी है
शाम बुढापा,
रात अंत की कहानी है,
विरोधाभास सुबह का कि
दिन ख़त्म नहीं होगा, 
नींद दो पहर का कि
यौवन लुप्त नहीं होगा,
पछतावा शाम का,
भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं होगा
पूरी  जिन्दगी की 
एक संचित स्वरूप है…
 
एक दिन कि जिन्दगी,
कुछ और नहीं बल्कि
सौ साल के लम्बे रास्ते की
एक छोटी सी लकीर है…

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                                    ( आर पी यदव, लखनऊ )

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